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सियाचिन में जवानों के लिए ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए इस दंपत्ति ने बेच दी अपनी ज्वेलरी
आज अगर हम अपने घरों में महफूज हैं तो सिर्फ सैनिकों की वजह से। दुनिया के सबसे ऊंचे जंग के मैदान सियाचीन की बात करें तो वहां ऑक्सीजन की इतनी कमी है कि कई बार सोते हुए भी सैनिकों की जान चली जाती है। वहां ठंड में तापमान शून्य से 55 डिग्री नीचे पहुंच जाता है। बेस कैंप से भारत की चौकी तक सैनिक कमर में रस्सी बांधकर चलते हैं कि अगर कोई बर्फ में धंस जाए तो उसे बचाया जा सके। 20-22 दिनों तक सैनिकों को ऐसे ही चलना पड़ता है। यहां के रास्ते कई हिस्सों में बंटे होते हैं। यहां की सबसे बड़ी परेशानी है ऑक्सीजन की कमी। ऐसे में आम लोगों का भी कर्तव्य बनता है कि वह उनके लिए कुछ करें।
महाराष्ट्र के पुणे के रहने वाले दंपत्ति ने सियाचीन में रहने वाले जवानों की इस परेशानी को देखते हुए एक फैसला लिया है। दंपत्ति ने ऑक्सीजन जेनेरेशन प्लांट लगाने के लिए अपनी सारी ज्वेलरी बेच दी है। उनका कहना है कि वहां ऑक्सीजन का लेवल बहुत कम है जिस कारण वहां ऑक्सीजन प्लांट बहुत आवश्यक है। उनका कहना है कि यह उनका कर्तव्य बनता है कि वह जवानों के लिए कुछ करें। इसलिए उन्होंने वहां बनने वाले ऑक्सीजन प्लांट में कुछ राशि दान करने का विचार किया है।
Couple in Pune has sold all their jewellery to construct an oxygen-generation plant for soldiers in Siachen. They say, 'the oxygen level is very low there & so an oxygen plant is needed. We decided to set it up as it's our duty to do something to help our soldiers' #Maharashtra pic.twitter.com/49ACsBYLMF
— ANI (@ANI) April 26, 2018
सुमिधा और योगेश चिताडे के मुताबिक उन्होंने अपनी ज्वेलरी बेचकर करीब 1 लाख 25 हजार रुपये जुटाए हैं। 1.10 करोड़ की लागत से बनने वाले ऑक्सीजन प्लांट में वह भी कुछ योगदान करना चाहते थे। सुमिधा का कहना है कि वह सेना के कल्याण के लिए 1999 से काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि जब वह सियाचीन बेस कैंप में थीं तो उन्हें पता चला कि वहां का मौसम बेहद कठोर है। गर्मियों में तापमान शून्य से 35 डिग्री नीचे होता है और सर्दियों में शून्य से 55 डिग्री नीचे पहुंच जाता है।
वहीं योगेश जो कि सेना से समयपूर्व रिटायर हो चुके हैं। उनका कहना है कि चंडीगढ़ से ऑक्सीजन सिलेंडर्स को 22,000 फीट की ऊंचाई तक पहुंचाया जाता है। कभी-कभी कोई हेलीकॉप्टर भी नहीं होता है जो वहां तक सिलेंडर पहुंचा सके। लेकिन अगर वहां प्लांट लग जाता है तो परिवहन लागत भी बचेगी और सैनिकों की मदद भी हो पाएगी।
बता दें कि पावर प्लांट की सहायता से ऑक्सीजन सिलेंडर्स को भरा जाता है जिसका लाभ करीब 9,000 सैनिकों को मिलता है। दंपत्ति ने अपना एक चेरिटेबल ट्रस्ट भी शुरू किया है जिसे पुणे के चेरिटेबल कमीश्नर द्वारा रजिस्टर्ड किया गया है। वहां इनके अलावा 5 अन्य ट्रस्टी भी हैं जो खुद भी कुछ पैसे योगदान करना चाहते हैं।
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