लालू पहले से ही बंद हैं जेल में
इस मामले से पूर्व देवघर कोषागार मामले में लालू यादव साढ़े तीन साल की कैद की सजा काट रहे हैं. वे इस समय रांची की बिरसा मुंडा जेल में बंद हैं. बीती 6 जनवरी को रांची की सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 950 करोड़ रुपये के चारा घोटाला से जुड़े एक मामले (देवघर कोषागार से 89 लाख, 27 हजार रुपये की अवैध निकासी) में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजद प्रमुख लालू प्रसाद को साढ़े तीन वर्ष की कैद एवं दस लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री पर इस मामले में पांच लाख रुपये जुर्माना भी लगाया गया है. जुर्माना अदा ना करने की सूरत में लालू प्रसाद को और छह माह की सजा भुगतनी होगी. अदालत ने 23 दिसंबर, 2017 को इस घोटाले के संबंध में लालू प्रसाद और 15 अन्य को दोषी करार दिया था.
देवघर कोषागार मामला
वर्ष 1990 से 1994 के बीच देवघर कोषागार से 89 लाख, 27 हजार रुपये की फर्जीवाड़ा कर अवैध ढंग से पशु चारे के नाम पर निकासी के इस मामले में कुल 38 लोग आरोपी थे जिनके खिलाफ सीबीआई ने 27 अक्तूबर, 1997 को मुकदमा संख्या आरसी 64 /1996 दर्ज किया था और लगभग 21 वर्षों बाद इस मामले में 23 दिसंबर को फैसला आया था. सीबीआई की विशेष अदालत ने चारा घोटाले के इस मामले में 23 दिसंबर 2017 को लालू प्रसाद समेत तीन नेताओं, तीन आइएएस के अलावा पशुपालन विभाग के तत्कालीन अधिकारी कृष्ण कुमार प्रसाद, मोबाइल पशु चिकित्साधिकारी सुबीर भट्टाचार्य एवं आठ चारा आपूर्तिकर्ताओं सुशील कुमार झा, सुनील कुमार सिन्हा, राजाराम जोशी, गोपीनाथ दास, संजय कुमार अग्रवाल, ज्योति कुमार झा, सुनील गांधी तथा त्रिपुरारी मोहन प्रसाद को अदालत ने दोषी करार देकर जेल भेज दिया था.
देवघर कोषागार से 89 लाख, 27 हजार रुपये के फर्जीवाड़े के मामले से जुड़े इसी मुकदमे में 23 दिसंबर को सीबीआई के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डा. जगन्नाथ मिश्रा, बिहार के पूर्व मंत्री विद्या सागर निषाद, पीएसी के तत्कालीन अध्यक्ष ध्रुव भगत, हार्दिक चंद्र चौधरी, सरस्वती चंद्र एवं साधना सिंह को निर्दोष करार देते हुए बरी कर दिया था.
चाईबासा के अन्य मामले में पहले भी हो चुकी है सजा
चारा घोटाले के चाईबासा कोषागार से 37 करोड़, 70 लाख रुपये की अवैध ढंग से निकासी मामले में लालू यादव को दोषी पाया गया था. इस मामले में उन्हें 5 साल की सजा सुनाई गई थी. सुप्रीम कोर्ट से उन्हें जमानत मिली हुई है. इसके बाद 6 जनवरी को देवघर कोषागार से जुड़े 89.37 के गबन मामले में लालू को साढ़े तीन साल कैद और 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था. इस मामले में वे रांची की बिरसा मुंडा जेल में कैद हैं. अब यह चाईबासा कोषागार का तीसरा मामला है. इसमें 33.67 करोड़ रुपये का गबन हुआ था. इस मामले में 2001 में सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की थी. इस मामले में लालू प्रसाद और डॉ. जगन्नाथ मिश्र, 3 रिटायर्ड आईएएस, पशुपालन विभाग के छह अधिकारी, तत्कालीन कोषागार अधिकारी और 40 सप्लायर शामिल आरोपी थे.
दुमका कोषागार मामला भी फाइनल में
चारा घोटाले से जुड़ा एक अन्य मामला दुमका कोषागार घोटाला की सुनवाई भी अपने अंतिम चरण में पहुंच गई है. यह मामला अवैध रूप से 3.31 करोड़ रुपये निकाले से जुड़ा है. इस मामले की सुनवाई भी सीबीआई के विशेष जज शिवपाल सिंह ही कर रहे हैं. 12 जनवरी को इस मामले में लालू यादव वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश हुए थे.
क्या है चारा घोटाला
चारा घोटाला बिहार का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार घोटाला था जिसमें पशुओं को खिलाए जाने वाले चारे के नाम पर 950 करोड़ रुपये सरकारी खजाने से फर्जीवाड़ा करके निकाले गए थे. सरकारी खजाने की इस चोरी में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव व पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र पर भी आरोप लगा. इस घोटाले के कारण लालू यादव को अपने पद से त्याग पत्र देना पड़ा, लेकिन कुर्सी उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंपी दी थी. यह घोटाला 1996 में हुआ था लेकिन जैसे-जैसे जांच हुई इसकी पर्तें खुलती गईं और लालू यादव व जगन्नाथ मिश्र जैसे कई सफेदपोश नेता इसमें शामिल नजर आए. मामला लगभग दो दशक तक चला.
बिहार पुलिस ने 1994 में राज्य के गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदगा जैसे कई कोषागारों से फर्ज़ी बिलों के ज़रिये करोड़ों रुपये की कथित अवैध निकासी के मामले दर्ज किए. रातों-रात सरकारी कोषागार और पशुपालन विभाग के कई सौ कर्मचारी गिरफ़्तार कर लिए गए, कई ठेकेदारों और सप्लायरों को हिरासत में लिया गया और पूरे राज्य में दर्जन भर आपराधिक मुक़दमे दर्ज किए.
साल 2013 में इस मामले से जुड़े 53 में से 44 मामलों में सुनवाई पूरी हुई. 500 से ज्यादा लोगों को दोषी पाया गया और विभिन्न अदालतों ने उन्हें सजा सुनाई. इसी साल अक्टूबर में चारा घोटाले से ही जुड़े एक मामले में 37 करोड़ रुपये के गबन को लेकर लालू यादव को दोषी पाते हुए सजा सुनाई गई. बाद में दिसंबर में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई. 10 मई, 1997 को सीबीआई ने बिहार के राज्यपाल से लालू के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. राज्यपाल की मंजूरी मिलते ही जून, 1997 को सीबीआई ने बिहार सरकार के पांच बड़े अधिकारियों महेश प्रसाद, के. अरुमुगम, बेक जुलियस, फूलचंद सिंह और रामराज राम को गिरफ्तार किया था.
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